चलो मै कबूलती हूँ अपना हर वह अपराध
अति व्यस्ततम लोगों के चेहरे पढने की मैंने की कोशिश
अपने अपनों की कतराती आँखों में मैंने फिर से झांकना चाहा
नज़र से नज़र मिला कर देती रही हर जवाब
माँ बाप की सीख गुरु के आदर्शों की जिम्मेदारी निभाती रही बैकुंठ
आखिर वे ही मुंसिफ हैं आज इस अदालत के
जिन्होंने चाहा मेरी हर कोशिश हर साहस हर जिम्मेदारी की हत्या हो जाए
उनकी उपस्थिति और अनुपस्थिति में भी मै कबूलती हूँ
अपना हर वह अपराध
भगवान् तुम्हे बीच में आने की इज़ाज़त भी नहीं
न न तरस खाने की जरुरत भी नहीं
मुझे तुमसे अधिक फिक्र है न्याय की कानून की दंड संहिता की
और इन सबसे कहीं अधिक ......
दुनिया को बेदाग रखने की तो चलो मै कबूलती हूँ अपना हर वह अपराध
.... डॉ सुधा उपाध्याय
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