धूप !
तुम धूप सी महका करो
तनिक झुक जाओ
इतनी मत तना करो
धूप !
तुम पीठ पर रेंगो
रेशमी छुअन बन
बिच्छू बन दंश न् दिया करो
धूप !
तुम दिसंबरी बनो
जेठ की कामना मत बनो
धूप !
तुम हर उस जगह जरूर पहुंचो
जहां नमी है , सीलन भी
उगाओ कुछ धरती के फूल
मत झुलसाओ
बहार ले आओ
राघवेंद्र,
अभी-अभी
तुम धूप सी महका करो
तनिक झुक जाओ
इतनी मत तना करो
धूप !
तुम पीठ पर रेंगो
रेशमी छुअन बन
बिच्छू बन दंश न् दिया करो
धूप !
तुम दिसंबरी बनो
जेठ की कामना मत बनो
धूप !
तुम हर उस जगह जरूर पहुंचो
जहां नमी है , सीलन भी
उगाओ कुछ धरती के फूल
मत झुलसाओ
बहार ले आओ
राघवेंद्र,
अभी-अभी
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