भले रोक दे राज्य तुम्हारा रथ फिर भी,
भले रोक दे भाग्य तुम्हारा पथ फिर भी,
जीवन कभी नहीं रुकता है, चाहे वक्त ठहर जाए।
जीवन तो पानी जैसा है, राह मिली बह जाएगा,
चाहे जितना कठिन सफ़र हो, राह बनाता जाएगा,
कोई सुकरात नहीं मरता है, चाहे ज़हर उतर जाए।
काट फेंक दे मिट्टी में, जीवन फिर से उग आएगा,
चाहे जितनी मिले पराजय, फिर भी स्वप्न सजायेगा,
बढ़ा क़दम बढ़ता जाएगा, चाहे जो मंज़र आए।
सब कुछ हो प्रतिकूल किन्तु वक्त गुजर ही जाता है,
रात अंधेरी होती जितनी, सुखद सवेरा आता है,
जा पहुँचेगा तैराक किनारे, चाहे बड़ी लहर आए।
जलती बाती बिना तेल की, धुआँ धुआँ सा उठता है,
चुपके से आकर अँधियारा, स्वत्व दीप का लुटता है,
अपने हाँथो कवच बना लो, लौ की तेज उभर आए।
कहीं चुरा ले नियति न सपने, तुमने सदा सँजोए,
कहीं बुझा दे प्रीति न कोई, तुमने सदा अँजोए,
इसके पहले नाव खोल दो, कहीं न रात उतर आए।
(.......रविनंदन सिंह)
भले रोक दे भाग्य तुम्हारा पथ फिर भी,
जीवन कभी नहीं रुकता है, चाहे वक्त ठहर जाए।
जीवन तो पानी जैसा है, राह मिली बह जाएगा,
चाहे जितना कठिन सफ़र हो, राह बनाता जाएगा,
कोई सुकरात नहीं मरता है, चाहे ज़हर उतर जाए।
काट फेंक दे मिट्टी में, जीवन फिर से उग आएगा,
चाहे जितनी मिले पराजय, फिर भी स्वप्न सजायेगा,
बढ़ा क़दम बढ़ता जाएगा, चाहे जो मंज़र आए।
सब कुछ हो प्रतिकूल किन्तु वक्त गुजर ही जाता है,
रात अंधेरी होती जितनी, सुखद सवेरा आता है,
जा पहुँचेगा तैराक किनारे, चाहे बड़ी लहर आए।
जलती बाती बिना तेल की, धुआँ धुआँ सा उठता है,
चुपके से आकर अँधियारा, स्वत्व दीप का लुटता है,
अपने हाँथो कवच बना लो, लौ की तेज उभर आए।
कहीं चुरा ले नियति न सपने, तुमने सदा सँजोए,
कहीं बुझा दे प्रीति न कोई, तुमने सदा अँजोए,
इसके पहले नाव खोल दो, कहीं न रात उतर आए।
(.......रविनंदन सिंह)
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