Friday, June 19, 2015

गीत !

न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
न तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लडखडाये मेरी बातों में
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्म-कश का राज़ नज़रों से

चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जायें हम दोनों
चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों

तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं, की ये जलवे पराये हैं
मेरे हमराह भी रुसवाइयां हैं मेरे माज़ी की
मेरे हमराह भी रुसवाइयां हैं मेरे माज़ी की
तुम्हारे साथ भी गुजरी हुई रातों के साये हैं

चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों
चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों

तार्रुफ़ रोग हो जाए तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा

चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों
चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों 


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