जिन्दगी नाम है कुछ लम्हों का..
और उन में भी वही एक लम्हा
जिसमे दो बोलती आँखें
चाय की प्याली से जब उठे
तो दिल में डूबें
डूब के दिल में कहें
आज तुम कुछ न कहो
आज मैं कुछ न कहूँ
बस युहीं बैठे रहो
हाथ में हाथ लिए
गम की सौगात लिए..
गर्मी-ए जज़्बात लिए..
कौन जाने कि इस लम्हे में
दूर परबत पे कहीं
बर्फ पिघलने ही लगे....
ब्लॉग कानपुर मासिक पत्रिका से साभार.....
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