जाओ तुमको मुक्त किया,
अब आवाज नहीं दूंगा।
यह भी आंखों का धोखा था,
मन को मैं समझा लूंगा।
क्या समझा था,तुम निकले क्या,
... तुम तो सबसे बदतर निकले।
देखा था मैंने एक रुप,
पर,रुप तेरे कितने निकले।
है खेल खेलना शौक तुम्हारा,
पर,जज्बातों से तुम मत खेलो।
विष दे दो,पर विश्वास न तोडो,
थोडा तुम खुद को बदलो।
- ओंकार मणि त्रिपाठी
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