वह आता-
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता ।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी – भर दाने को – भूख मिटाने को
मुँह फ़टी पुरानी झोली का फ़ैलाता-
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता ।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फ़ैलाये,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया- दृष्टि पाने की ओर बढाये ।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता – भाग्य – विधाता से क्या पाते ? –
घूँट आसुओं के पीकर रह जाते ।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़्क पर खड़े हुए,
-- सुर्यकान्त त्रिपाठी ’निराला’
Meri man pasand kavitaa.
ReplyDeleteसुंदर कविता
ReplyDeleteमित्र आप और आपकी तरह से अनेक साथी ब्लॉग पर लिख रहे हैं। किसी ने किसी स्तर पर इसका समाज पर असर होता है। जिससे देश की ताकत और मानवता को मजबूती मिलती है, लेकिन भ्रष्टाचार का काला नाग सब कुछ चट कर जाता है। क्या इसके खिलाफ एकजुट होने की जरूरत नहीं है? भ्रष्टाचार से केवल सीधे तौर पर आहत लोग ही परेशान हों ऐसा नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार वो सांप है जो उसे पालने वालों को भी नहीं पहचानता। भ्र्रष्टाचार रूपी काला नाग कब किसको डस ले, इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता! भ्रष्टाचार हर एक व्यक्ति के जीवन के लिये खतरा है। अत: हर व्यक्ति को इसे आज नहीं तो कल रोकने के लिये आगे आना ही होगा, तो फिर इसकी शुरुआत आज ही क्यों न की जाये?
ReplyDeleteइसी दिशा में कुछ सुझाव एवं समाधान सुझाने के छोटे से प्रयास के रूप में-
"रुक सकता है 90 फीसदी भ्रष्टाचार!"
आलेख निम्न ब्लॉग्स पर पढा जा सकता है?
http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/90.html
http://presspalika.blogspot.com/2010/11/90.html
http://presspalika.mywebdunia.com/2010/11/17/90_1289972520000.html
Yours.
Dr. Purushottam Meena 'Nirankush
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