याद है तुम्हें
जब मिले थे हम
पहली बार,
हर तरफ बिखरे थे
जलते हुए पलाश,
किसी अभेद
अदृश्य किले में
विचरते, तलाशते
प्रेम के क्षण,
क्यूं भुला दिये
गये जाने
साक्षी हमारे
पावन प्रेम के
वो सारे अहसास,
कितनी सदियों से
स्मृतियों में बसी
प्रेम की गंध,
विस्मृतियों मे खोज रही
आती-जाती हर एक सांस,
दीप जल रहा कबसे
लौ भी हो गयी
जैसे स्थिर,
समय का चक्र
फिर घुम रहा
याद दिलाने फिर
लौट आया इतिहास......
- डॉ. अरुणा
जब मिले थे हम
पहली बार,
हर तरफ बिखरे थे
जलते हुए पलाश,
किसी अभेद
अदृश्य किले में
विचरते, तलाशते
प्रेम के क्षण,
क्यूं भुला दिये
गये जाने
साक्षी हमारे
पावन प्रेम के
वो सारे अहसास,
कितनी सदियों से
स्मृतियों में बसी
प्रेम की गंध,
विस्मृतियों मे खोज रही
आती-जाती हर एक सांस,
दीप जल रहा कबसे
लौ भी हो गयी
जैसे स्थिर,
समय का चक्र
फिर घुम रहा
याद दिलाने फिर
लौट आया इतिहास......
- डॉ. अरुणा
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