धुंधली पड़ गईं भित्तिचित्र की लकीरें,
फिर भी, वह छुअन वही है!
एक परस वीणा के तारों को
सहलाकर भरता झंकार!
दूसरा मिटाता है, तटवर्ती
बना हुआ पूरा संसार !
बर्फीली जकड़न से कसी हुई जंजीरें,
फिर भी, वह तपन वही है!
संज्ञाएँ सर्वनाम अर्थहीन
संयोजित वाक्य गया टूट !
अनकही कहानी का दंश महज,
रहा और रह गया अटूट !
घाटी के पार कहीं गूँज रहीं मंजीरें-
थपक वही,गमक वही,चुभन वही है!!
— रविकेश मिश्र, बगहा ।
फिर भी, वह छुअन वही है!
एक परस वीणा के तारों को
सहलाकर भरता झंकार!
दूसरा मिटाता है, तटवर्ती
बना हुआ पूरा संसार !
बर्फीली जकड़न से कसी हुई जंजीरें,
फिर भी, वह तपन वही है!
संज्ञाएँ सर्वनाम अर्थहीन
संयोजित वाक्य गया टूट !
अनकही कहानी का दंश महज,
रहा और रह गया अटूट !
घाटी के पार कहीं गूँज रहीं मंजीरें-
थपक वही,गमक वही,चुभन वही है!!
— रविकेश मिश्र, बगहा ।
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