तू मिला भी कब !
तू कहाँ मिला !
कभी नहीं मिला ..!
तू नही मिला...
तब हुआ गिला ..
तन जला मेरा..
मन चला मेरा ..
फिर ....मनचला ..
और उठा धुँआ..
बिन आग नहीं..
गाने लगा
कोई राग नहीं..
नहीं कोई जिरह..
बस बिरह बिरह..
उर किलस किलस
पर गिरह गिरह
कोई खुली नहीं..
कुछ खुला भी जब
तब बचा नही..
बची रही बस
याद तेरी
दिल में जो पला ..
ख्वाब कोई ..
सच में ना ढला .. ...
कभी ख्वाब कोई...
किंतु नही..
कुछ भी खला...
कोई ले ना घेर
अब कर ना देर
होगी अंधेर..
तेरी टेर टेर
मेरा मन बटेर
हर इक मुंडेर
हर इक मुंडेर .....
तू कहाँ मिला !
कभी नहीं मिला ..!
तू नही मिला...
तब हुआ गिला ..
तन जला मेरा..
मन चला मेरा ..
फिर ....मनचला ..
और उठा धुँआ..
बिन आग नहीं..
गाने लगा
कोई राग नहीं..
नहीं कोई जिरह..
बस बिरह बिरह..
उर किलस किलस
पर गिरह गिरह
कोई खुली नहीं..
कुछ खुला भी जब
तब बचा नही..
बची रही बस
याद तेरी
दिल में जो पला ..
ख्वाब कोई ..
सच में ना ढला .. ...
कभी ख्वाब कोई...
किंतु नही..
कुछ भी खला...
कोई ले ना घेर
अब कर ना देर
होगी अंधेर..
तेरी टेर टेर
मेरा मन बटेर
हर इक मुंडेर
हर इक मुंडेर .....
— विवेक मिश्र ( चरस्तु )
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