रेवड़ की नदी ,
सतत प्रवाही शाश्वत .
पंहुंच वाले बांस,
गड़रियों के हाथ.
रेवड़ में छिपे कुत्ते,
संचालक के साथ .
हरी घास पर नदी ,
झील सी बिछा दी जाती .
जाओ -
हरी घास चरों,
उन उगाओ,
मेमनें जनो.
हमारे लिए-
भरदों अपने थन दूध से.
जिव्हा लपलपाते
नुकीले दांत चमकाते कुत्ते
नदी को हद में रखते
हांकते, हुडकते,पुचकारते गडरिये
ऊन उतारते,
दूध दुहते.
....
कुत्ते बदलते,
गडरिये बदलते पर,
न बदलती नदी की किस्मत .
रेवड़ की नदी
सतत प्रवाही शाश्वत .
**
-विनय के जोशी
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