अम्मा ने बात-बात पर तुनकना
भइया ने ठहाके लगाकर हंसना
... हम सब ने स्वाभिमान से जीना...
बदल-बदलकर घर उकता गए हम
तस्वीरे, फर्नीचर, गुलदान बदले
नहीं बदल पाए तो वह है घर में परसी उदासी
भौतिक तरक्की खूब की हमने
एक दूसरे से मिलना भी छूट गया
अस्त व्यस्त होते गए हम, साथ जीना मरना भी छूट गया
ठठरी ठठरी सी हो गई अम्मा..जोगी जोगी सा हो गया भइया
तितर-बितर आपके हीरा मोती
आपके जाने के बाद पता चला
आपका होना कितना जरूरी था....
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