Thursday, February 17, 2011
नवीन चतुर्वेदी की ग़ज़ल !
नवीन सी चतुर्वेदी का जन्म अक्टूबर 1968 मे मथुरा मे हुआ। वाणिज्य से स्नातक नवीन जी ने वेदों मे भी आरंभिक शिक्षा ग्रहण की है। अभी मुम्बई मे रहते हैं और साहित्य के प्रति खासा रुझान रखते हैं। आकाशवाणी मुंबई पर कविता पाठ के अलावा अनेकों काव्यगोष्ठियों मे भी शिरकत की है और आँडियो कसेट्स के लिये भी लेखन किया है। ब्रजभाषा, हिंदी, अंग्रेजी और मराठी मे लेखन के साथ नवीन जी ब्लॉग पर तरही मुशायरों का संचालन भी करते हैं। ज्यादा से ज्यादा नयी पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने का प्रयास है।
ग़ज़ल !
गगनचरों को दे बुलावा चार दानों पर|
बहेलिए फिर ताक में बैठे मचानों पर |१|
बुजुर्ग लोगों से सुना है वो सुनाता हूँ|
हवाएँ भी हैं नाचती दिलकश तरानों पर |२|
हुनर हो कोई भी, बड़ी ही कोशिशें माँगे|
न खूँ में होता है, न मिलता ये दुकानों पर |३|
अवाम के पैसे पचाना जानते हैं जो|
हुजूम बैठा ही रहे उन के मकानों पर |४|
विकास की खातिर मदद के नाम पर यारो|
लुटा रहे लाखों करोड़ों कारखानों पर |५|
जिन्हें तरक्कियों से निस्बतें होतीं हरदम|
न ध्यान देते वो फ़िज़ूलन तंज़ - तानों पर |६|
पहाड़ की चोटी तलक वो ही पहुँचते हैं|
फिसल चुके हों जो कभी उन की ढलानों पर |७|
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