लो रख लो मेरी डायरी
इसमें वह सब कुछ है
जो मैंने चाह कर भी
तुमसे कभी नहीं कहा...
जो नहीं कहा कभी
तुम उसी अनकहे में
हमेशा रहे मेरे साथ
इस डायरी में है मेरी जिंदगी
जो मैंने जी तुम्हारे
होने न होने के बीच
शब्दों में मिलूंगी मैं तुम्हें
स्मृतियों की गलियों में भटकते ,
तुम्हारा पता तुम्ही से पूछते हुए...
कहीं एकांत में सीढ़ियों पर बैठे
तुम्हें देखते हुए जी भर...
ये सनद है डायरी
कोई पूछे तो कहना क़ि
मैंने तुम्हे प्यार किया था
एक तितली है इसमें रंगहीन ,
बुकमार्क की तरह
मेरे कहने पर पकड़कर दी थी
तुमने मुझे
अब नहीं है यह भी मेरी तरह...
अब नहीं हूं मैं तुम्हारे पास
तुम्हारी यादों में रोते हुए
इन्तज़ार करते हुए दरवाज़े पर।
अब पढ़ोगे मुझे ?
**अजामिल