मैं खुद से मिलने जाता हूँ
मैं खुद को ढूढ़ के लाता हूँ
मैं खुद से मिलने जाता हूँ
दुर्जम वन के अंधियारे में
धरती से दूर किनारे में
मैं खुद का पीछा करता हूँ
निर्जन मन के गलियारे में
कुछ खोता हूँ कुछ पाता हूँ
मैं खुद से मिलने जाता हूँ
कुछ साथ नही कुछ सोच नही
आशाओं का बोझ नही
दिल सीसे सा लाता हूँ
भावों का कोई खरोंच नही
फिर से सीसा चमकाता हूँ
मैं खुद से मिलने आता हूँ
नागफनी या बरगद हो
बड़ा हो या बौना कद हो
अंतर्मन की पर्तें खोलूं
हो गरल कहीं या कुछ मद हो
मद गरल वहीं खो आता हूँ
मैं खुद से मिलने जाता हूँ
जब खुद को खुद में पाता हूँ
तब ही मैं वापस मैं आता हूँ
मैं खुद से मिलने जाता हूँ
मैं खुद से मिलने जाता हूँ
राजेश कुमार श्रीवास्तव
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