साल 1992 में ही भविष्यदृष्टा कवि/लेखक जयनाथ प्रसाद ‘सात्विक’ जी ने कविता लिखी जो आज के कोरोना दौर में बिल्कुल सटीक बैठती है -
हे उद्धत मानव !
बहुत खाये
तुमने
ज्ञानवृक्ष के वर्जित फल
और
अब
अपच हो गया है
तुम्हें।
इसकी मिठास ने
मोहित कर दिया है तुम्हें।
और
तुम
समाज से
बहुत ऊपर अत्यन्त विशिष्ट
समझने लगे हो
अपने को
इसीलिए
तुम्हें झेलनी पड़ रही है
एकांतवास की
पीड़ा
जिसका
न ओर है, न छोर।
फिर भी नहीं चेतते
ओ पगले !
तो इसमें किसका दोष ?
- जयनाथ प्रसाद ‘‘सात्विक’’
हे उद्धत मानव !
बहुत खाये
तुमने
ज्ञानवृक्ष के वर्जित फल
और
अब
अपच हो गया है
तुम्हें।
इसकी मिठास ने
मोहित कर दिया है तुम्हें।
और
तुम
समाज से
बहुत ऊपर अत्यन्त विशिष्ट
समझने लगे हो
अपने को
इसीलिए
तुम्हें झेलनी पड़ रही है
एकांतवास की
पीड़ा
जिसका
न ओर है, न छोर।
फिर भी नहीं चेतते
ओ पगले !
तो इसमें किसका दोष ?
- जयनाथ प्रसाद ‘‘सात्विक’’