कहना है
माटी को दिल से आभार !
एक तुम्हीं जिसमें मैं अँकुराया, खिलखिलाया
छू सका असीम का विस्तार
माटी को दिल से आभार !
एक तुम्हीं जिसमें मैं अँकुराया, खिलखिलाया
छू सका असीम का विस्तार
कहना ही है उन संगी-साथियों को
जो गलियों में उबे बिना अगोरते रहे
और भूलूँ कैसे पेड़ों की वे डालियाँ
उदासियों में मुझे जो झकझोरते रहे
आभार उस झरने का
जिसने मुझे बहना सिखाया
दरअसल पत्थरों को गहना बताया
माँ की छाती का आभार
जहाँ मैंने पाया जीवन का अमृत
अपरिमित, अपार
आभार ! आभार !! आभार !!!
उन सारे बुरे दिनों के प्रति
जो दिखते नहीं अब कहीं
पर रह-रहकर आते हैं जब कभी याद
तब-तब मुझसे करता है जीवन डरकर संवाद ।
जो गलियों में उबे बिना अगोरते रहे
और भूलूँ कैसे पेड़ों की वे डालियाँ
उदासियों में मुझे जो झकझोरते रहे
आभार उस झरने का
जिसने मुझे बहना सिखाया
दरअसल पत्थरों को गहना बताया
माँ की छाती का आभार
जहाँ मैंने पाया जीवन का अमृत
अपरिमित, अपार
आभार ! आभार !! आभार !!!
उन सारे बुरे दिनों के प्रति
जो दिखते नहीं अब कहीं
पर रह-रहकर आते हैं जब कभी याद
तब-तब मुझसे करता है जीवन डरकर संवाद ।
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