Friday, October 31, 2014

कवि का गीत !

चलो छूट गए एक घर की देहरी पर चलें
गांव की चौपाल पर हो कविता

रेल के डिब्बों में बेचें कविता की बुकलेट
सड़क पर गाएँ कवित्त

गजल हो नदी किनारे एक-आध घंटे
पेड़ों के बीच हो गीत कुछ पल
खेतों में बिरहा-सिनरैनी-चैता

सुनो मेरी बात
मत जाओ दिल्ली - भोपाल - लखनऊ-इलाहाबाद या पटना
चलो मेरे साथ हरनाथपुर

चलो जल्दी करो
समय हाथ से पखेरू की तरह यह उड़ा कि वह...।।


सौजन्य  - विमलेश त्रिपाठी वाया फेसबुक

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