बाबा कहते थे
अंग्रेजों के ज़माने का है
यमुना की हरी धाराओं के बीच खड़ा
लोहे का ये पुल
चौदह साल की थी मैं
जब पापा के साथ शहर गई थी
इसी सकरे पुल से होकर
पापा सायकिल चला रहे थे
मैं पीछे बैठी
जैसे ही कोई ट्रैक आता
पापा बिलकुल किनारे
पुल की रेलिंग मेरे शारीर से
दो चार इंच दूर
दर्द कर रहे दांतो को छोड़
दिल पर रख लेती थी हाँथ
डर के मारे
मेरी रूह काँप जाती
ऐसा ही था डरावना
ये पुल मेरे लिए।
- सरस्वती निषाद
अंग्रेजों के ज़माने का है
यमुना की हरी धाराओं के बीच खड़ा
लोहे का ये पुल
चौदह साल की थी मैं
जब पापा के साथ शहर गई थी
इसी सकरे पुल से होकर
पापा सायकिल चला रहे थे
मैं पीछे बैठी
जैसे ही कोई ट्रैक आता
पापा बिलकुल किनारे
पुल की रेलिंग मेरे शारीर से
दो चार इंच दूर
दर्द कर रहे दांतो को छोड़
दिल पर रख लेती थी हाँथ
डर के मारे
मेरी रूह काँप जाती
ऐसा ही था डरावना
ये पुल मेरे लिए।
- सरस्वती निषाद
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