शहादतों को भूलकर सियासतों को
जी रहे
पड़ोसियों से पिट रहे हैं और
होंठ सी रहे
कुर्सियों से प्यार है, न खुद
पे ऐतबार है-
नशा निषेध इस तरह कि मैकदे में
पी रहे
जो सच कहा तो घेर-घेर कर रहे
हैं वार वो
हद है ढोंग नफरतों को कह रहे
हैं प्यार वो
सरहदों पे सर कटे हैं, संसदों
में बैठकर-
एक-दूसरे को कोस, हो रहे निसार
वो
मुफ़्त भीख लीजिए, न रोजगार
माँगिए
कामचोरी सीख, ख्वाब अलगनी पे
टाँगिए
फर्ज़ भूल, सिर्फ हक की बात याद
कीजिए-
आ रहे चुनाव देख, नींद में भी
जागिए
और का सही गलत है, अपना झूठ
सत्य है
दंभ-द्वेष-दर्प साध, कह रहे
सुकृत्य है
शब्द है निशब्द देख भेद
कथ्य-कर्म का-
वार वीर पर अनेक कायरों का
कृत्य है
प्रमाणपत्र गैर दे: योग्य या
अयोग्य हम?
गर्व इसलिए कि गैर भोगता,
सुभोग्य हम
जो न हाँ में हाँ कहे, लांछनों
से लाद दें -
शिष्ट तज, अशिष्ट चाह, लाइलाज
रोग्य हम
गंद घोल गंग में तन के
मुस्कुराइए
अनीति करें स्वयं दोष प्रकृति
पर लगाइए
जंगलों के, पर्वतों के नाश को
विकास मान-
सन्निकट विनाश आप जान-बूझ लाइए
स्वतंत्रता है, आँख मूँद संयमों
को छोड़ दें
नियम बनायें और खुद नियम
झिंझोड़-तोड़ दें
लोक-मत ही लोकतंत्र में अमान्य
हो गया-
सियासतों से बूँद-बूँद सत्य की
निचोड़ दें
हर जिला प्रदेश हो, राग यह
अलापिए
भाई-भाई से भिड़े, पद पे जा
विराजिए
जो स्वदेशी नष्ट हो, जो विदेशी
फल सके-
आम राय तज, अमेरिका का मुँह
निहारिए
धर्महीनता की राह, अल्पसंख्यकों
की चाह
अयोग्य को वरीयता, योग्य करे
आत्म-दाह
आँख मूँद, तुला थाम, न्याय तौल
बाँटिए-
बहुमतों को मिल सके नहीं कहीं
तनिक पनाह
नाम लोकतंत्र, काम लोभतंत्र कर
रहा
तंत्र गला घोंट लोक का
विहँस-मचल रहा
प्रजातंत्र की प्रजा है पीठ,
तंत्र है छुरा-
राम हो हराम, तज विराम दाल दल
रहा
तंत्र थाम गन न गण की बात तनिक
मानता
स्वर विरोध का उठे तो लाठियां
है भांजता
राजनीति दलदली जमीन कीचड़ी मलिन-
राजनीति दलदली जमीन कीचड़ी मलिन-
लोक जन प्रजा नहीं दलों का हित
ही साधता
धरें न चादरों को ज्यों का
त्यों करेंगे साफ़ अब
बहुत करी विसंगति करें न और माफ़
अब
दल नहीं, सुपात्र ही चुनाव लड़
सकें अगर-
पाक-साफ़ हो सके सियासती हिसाब
तब
लाभ कोई ना मिले तो स्वार्थ भाग
जाएगा
देश-प्रेम भाव लुप्त-सुप्त जाग
जाएगा
देस-भेस एक आम आदमी सा तंत्र
का-
हो तो नागरिक न सिर्फ तालियाँ
बजाएगा
धर्महीनता न साध्य, धर्म हर
समान हो
समान अवसरों के संग, योग्यता का
मान हो
तोडिये न वाद्य को, बेसुरा न
गाइए-
नाद ताल रागिनी सुछंद ललित गान
हो
शहीद जो हुए उन्हें सलाम, देश
हो प्रथम
तंत्र इस तरह चले की नयन कोई हो
न नम
सर्वदली-राष्ट्रीय हो अगर सरकार
अब
सुनहरा हो भोर, तब ही मिट सके
तमाम तम
- आचार्य संजीव 'सलिल'
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