तू दर्दे-दिल को आईना बना लेती तो अच्छा था
मोहब्बत की कशिश दिल में सजा लेती तो अच्छा था
बचाने के लिए तुम खुद को आवारा-निगाही से
निगाहे-नाज को खंजर बना लेती तो अच्छा था
तेरी पलकों के गोशे में कोई आंसू जो बख्शे तो
उसे तू खून का दरिया बना लेती तो अच्छा था
सुकूं मिलता जवानी की तलातुम-खेज मौजों को
किसी का ख्वाब आंखों में बसा लेती तो अच्छा था
ये चाहत है तेरी मरजी, मुझे चाहे न चाहे तू
हां, मुझको देखकर तू मुस्कुरा देती तो अच्छा था
तुम्हारा हुस्ने-बेपर्दा कयामत-खेज है कितना
किसी के इश्क को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
तेरी निगहे-करम के तो दिवाने हैं सभी लेकिन
झुका पलकें किसी का दिल चुरा लेती तो अच्छा था
किसी के इश्क में आंखों से जो बरसात होती है
उसी बरसात में तू भी नहा लेती तो अच्छा था
तेरे जाने की आहट से किसी की जां निकलती है
खुदारा तू किसी की जां बचा लेती तो अच्छा था
- रचनाकार वसीम अकरम
मोहब्बत की कशिश दिल में सजा लेती तो अच्छा था
बचाने के लिए तुम खुद को आवारा-निगाही से
निगाहे-नाज को खंजर बना लेती तो अच्छा था
तेरी पलकों के गोशे में कोई आंसू जो बख्शे तो
उसे तू खून का दरिया बना लेती तो अच्छा था
सुकूं मिलता जवानी की तलातुम-खेज मौजों को
किसी का ख्वाब आंखों में बसा लेती तो अच्छा था
ये चाहत है तेरी मरजी, मुझे चाहे न चाहे तू
हां, मुझको देखकर तू मुस्कुरा देती तो अच्छा था
तुम्हारा हुस्ने-बेपर्दा कयामत-खेज है कितना
किसी के इश्क को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
तेरी निगहे-करम के तो दिवाने हैं सभी लेकिन
झुका पलकें किसी का दिल चुरा लेती तो अच्छा था
किसी के इश्क में आंखों से जो बरसात होती है
उसी बरसात में तू भी नहा लेती तो अच्छा था
तेरे जाने की आहट से किसी की जां निकलती है
खुदारा तू किसी की जां बचा लेती तो अच्छा था
- रचनाकार वसीम अकरम