Friday, August 23, 2013

जुड़ाव !

जानता हूँ
तोड़ने से ज्यादा कठिन है
जोड़ना
कोशिश भी करता हूँ
कि भरसक मुझसे
कुछ टूटने न पाए
लेकिन टूटना नियति है
जैसे पेड़ से टूटते हैं पके फल और सूखी पत्तियाँ
जैसे गरीब के सपने टूटते हैं
तुम्हारे बाल टूटते हैं
जैसे दुनिया की फरेबी बातों से
टूटते हैं मासूमों के दिल
हाँ तसल्लीबख्श होकर कह सकता हूँ
कि इनमें से
किसी भी टूट से मेरा सरोकार नहीं
पर यह तसल्ली
तोड़ जाती है वह भरोसा जो तुमने मुझ पर जताया था
और मैं जुड़ जाता हूँ
टूटे हुयों की ज़मात में !


-अनिरुद्ध "अनजान"

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