अमरीका जाओ या चीन जाओ पापा ।
होमवर्क करने की मशीन लाओ पापा ।
सारा-सारा दिन तो
स्कूल में गुजरता
होमवर्क करने को
समय कहाँ बचता ?
टीचरजी को जाकर समझाओ पापा ।
काम नहीं पूरा हो तो
तो पिटाई झेलो
कोई नहीं कहता कि
जाओ, भाई खेलो ।
सोचो, सोचो, कुछ चक्कर चलाओ पापा ।
- बालकवि रमेश तैलंग जी की एक बाल कविता
Thursday, January 19, 2012
Wednesday, January 18, 2012
एक छोटी-सी लड़ाई !
मुझे लड़नी है एक छोटी —सी लड़ाई
एक झूठी लड़ाई में मैं इतना थक गया हूँ
कि किसी बड़ी लड़ाई के क़ाबिल नहीं रहा.
मुझे लड़ना नहीं अब—
किसी छोटे क़द वाले आदमी के इशारे पर—
जो अपना क़द लंबा करने के लिए मुझे युद्ध में झोंक देता है.
मुझे लड़ना नहीं —
किसी प्रतीक के लिए
किसी नाम के लिए
किसी बड़े प्रोग्राम के लिए
मुझे लड़नी है एक छोटी—सी लड़ाई
छोटे लोगों के लिए
छोटी बातों के लिए.
मुझे लड़ना है एक मामूली क्लर्क के लिए
जो बिना चार्जशीट मुअत्तिल हो जाता है
जो पेट में अल्सर का दर्द लिए
जेबों में न्याय की अर्ज़ी की प्रतिलिपियाँ भर कर
नौकरशाही के फ़ौलादी दरवाज़े
अपनी कमज़ोर मुठ्ठियों से खटखटाता है.
मुझे लड़ना है—
जनतंत्र में उग रहे वनतंत्र के ख़िलाफ़
जिसमें एक गैंडानुमा आदमी दनदनाता है
मुझे लड़ना है—
अपनी ही कविताओं के बिंबों के ख़िलाफ़
जिनके अँधेरे में मुझसे—
ज़िंदगी का उजाला छूट जाता है ।
- कुमार विकल
एक झूठी लड़ाई में मैं इतना थक गया हूँ
कि किसी बड़ी लड़ाई के क़ाबिल नहीं रहा.
मुझे लड़ना नहीं अब—
किसी छोटे क़द वाले आदमी के इशारे पर—
जो अपना क़द लंबा करने के लिए मुझे युद्ध में झोंक देता है.
मुझे लड़ना नहीं —
किसी प्रतीक के लिए
किसी नाम के लिए
किसी बड़े प्रोग्राम के लिए
मुझे लड़नी है एक छोटी—सी लड़ाई
छोटे लोगों के लिए
छोटी बातों के लिए.
मुझे लड़ना है एक मामूली क्लर्क के लिए
जो बिना चार्जशीट मुअत्तिल हो जाता है
जो पेट में अल्सर का दर्द लिए
जेबों में न्याय की अर्ज़ी की प्रतिलिपियाँ भर कर
नौकरशाही के फ़ौलादी दरवाज़े
अपनी कमज़ोर मुठ्ठियों से खटखटाता है.
मुझे लड़ना है—
जनतंत्र में उग रहे वनतंत्र के ख़िलाफ़
जिसमें एक गैंडानुमा आदमी दनदनाता है
मुझे लड़ना है—
अपनी ही कविताओं के बिंबों के ख़िलाफ़
जिनके अँधेरे में मुझसे—
ज़िंदगी का उजाला छूट जाता है ।
- कुमार विकल
Tuesday, January 3, 2012
नन्ही सी परी !
मेरे दिल के महलो में, पली नन्ही सी परी
छोड़ के आगन बापू का, पीहर को चले,
खुशियों की पुड़ियों में, बढ़ी नाज़ुक सी कली
कर के पराया इस घर को, उस घर की लाज बने,
गुजरे मेरे अतीत लमहों में, बीती सुखों सी घड़ी
कैसे करू जुदा इस पल को, जिस पल को कभी तू निहार चले,
गिरवी रखे मेरे दुखो में, सजी खुशियों की फूलझड़ी
... तोड़ के ख्वाब बाबुल का, सपने सजाने ससुराल चले..!!
छोड़ के आगन बापू का, पीहर को चले,
खुशियों की पुड़ियों में, बढ़ी नाज़ुक सी कली
कर के पराया इस घर को, उस घर की लाज बने,
गुजरे मेरे अतीत लमहों में, बीती सुखों सी घड़ी
कैसे करू जुदा इस पल को, जिस पल को कभी तू निहार चले,
गिरवी रखे मेरे दुखो में, सजी खुशियों की फूलझड़ी
... तोड़ के ख्वाब बाबुल का, सपने सजाने ससुराल चले..!!
Sunday, January 1, 2012
नए साल की शुभकामनाएं!
खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को
कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को
नए साल की शुभकामनाएं!
...
जांते के गीतों को बैलों की चाल को
करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को
नए साल की शुभकामनाएं!
इस पकती रोटी को बच्चों के शोर को
चौंके की गुनगुन को चूल्हे की भोर को
नए साल की शुभकामनाएं!!
वीराने जंगल को तारों को रात को
ठंडी दो बंदूकों में घर की बात को
नए साल की शुभकामनाएं!
इस चलती आँधी में हर बिखरे बाल को
सिगरेट की लाशों पर फूलों से ख़याल को
नए साल की शुभकामनाएं!
कोट के गुलाब और जूड़े के फूल को
हर नन्ही याद को हर छोटी भूल को
नए साल की शुभकामनाएं!
उनको जिनने चुन-चुनकर ग्रीटिंग कार्ड लिखे
उनको जो अपने गमले में चुपचाप दिखे
नए साल की शुभकामनाएं!
(सर्वेश्वर दयाल सक्सेना)
कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को
नए साल की शुभकामनाएं!
...
जांते के गीतों को बैलों की चाल को
करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को
नए साल की शुभकामनाएं!
इस पकती रोटी को बच्चों के शोर को
चौंके की गुनगुन को चूल्हे की भोर को
नए साल की शुभकामनाएं!!
वीराने जंगल को तारों को रात को
ठंडी दो बंदूकों में घर की बात को
नए साल की शुभकामनाएं!
इस चलती आँधी में हर बिखरे बाल को
सिगरेट की लाशों पर फूलों से ख़याल को
नए साल की शुभकामनाएं!
कोट के गुलाब और जूड़े के फूल को
हर नन्ही याद को हर छोटी भूल को
नए साल की शुभकामनाएं!
उनको जिनने चुन-चुनकर ग्रीटिंग कार्ड लिखे
उनको जो अपने गमले में चुपचाप दिखे
नए साल की शुभकामनाएं!
(सर्वेश्वर दयाल सक्सेना)
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