उसकी आँखे
कि बारिश में
भीगी कोई लड़की
बार-बार
बदन को छूते कपड़े
छुड़ाए
उसकी बातें
कि माँ सामने बैठा कर
खाना खिलाए
और रोटी पलटना ही भूल जाए
उसका रूठना
कि मुँह फुलाए बच्चे के गाल पर
काटे चिकोटी,माथा चूमें और मुस्कुरा दे
उसका मनाना
कि कोई हो इतना मजबूर
कि न होंठ हँसे खुल के न आँखों में आँसू आए
उसका चलना
कि उफने कोई बरसाती नदी
और अचानक मुड़ जाए
उसका होना
कि होना हो सब कुछ का
उसका न होना
कि ........
कवि- मनीष वंदेमातरम्
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