स्त्री की खूबसूरती का वर्णन सदियों से हुआ है
जब शब्द नहीं थे, ना ही रंगों से सजी चित्रकारी थी
तब भी पुरुष का स्त्री की प्रति सौंदर्य बोध व आकर्षण था...
फिर सभ्यता का विकास हुआ, गीत संगीत, काव्य और चित्रों का दौर शुरू हुआ....
अन्य विषयों के साथ स्त्री सौंदर्य हमेशा प्रमुख रहा
उसने नारी के केश सज्जा,
सुन्दर नयन व उजले रंग पर हमेशा जोर दिया है
क्यों कभी उस से ऊपर ना पहुंच सके तुम...
हे पुरुष!! तुम तो स्वयं को पौरुषता से परिपूर्ण समझते हो....
फिर क्यों स्त्री की लिए ये भौतिक मानदण्ड स्थापित किये?
क्या तुम्हे नहीं दिखी उसमे ममता प्रेम के साथ
नये सृजन को संभव करने की बहादुरी...
कैसे अनदेखा कर दिया उसका भी आखेट करना
वो लकड़ी बीनकर बच्चे पालना
और कृषि कार्य में प्रमुखता क्या दिखी नहीं??
उसमे भी थीं अपार संभावनाएं
ख़ुदको साबित भी किया उसने
कल्पना शीलता के साथ विज्ञान और दर्शन
के बीज उसमे भी थे...
गृह प्रबंधन, राजनीति से लेकर अंतरिक्ष तक उड़ान भरी .
फिर क्यों तुम हर गीत में सिर्फ उसके सुर्ख लबों और कपालों तक पहुंचे...
क्यों नहीं बॉलीवुड संगीत बना,
जिसमे उसके प्रबंधन या प्रशासकीय गुणों का वर्णन
खुले मन से किया हो...
क्या तुम्हे वो स्त्री खूबसूरत नहीं लगी, जिसने तर्क वितर्क में पुरुष को पीछे छोड़ा हो...
क्यों तुम उसके कपाल,
उरोज और पैमाने से मापे तन तक रहे....
क्यों नहीं बढ़ सके स्त्री देह से आगे..
क्यों नहीं पढ़ा उसके हुनर को...
क्यों नहीं टांक दीं वो बातें किसी तस्वीर में,
जो उसकी बुद्धिमता का प्रतीक हों...
यकीन मानो हर स्त्री को होगी तब ज्यादा खुशी
जब तुम उसे दैहिक सौंदर्य से परे समझोगे..
और जब तुम किसी खास मकसद से उसके बाह्य सौंदर्य की विवेचना करते हो...
तो वो तुम्हारा मन ताड़ लेती है...
© पूनम भास्कर 'पाखी '
एस0डी0एम0, सीतापुर (उ0प्र0)