Tuesday, January 10, 2017

मेरा रायपुर शहर अब बदल चला है !

कुछ अजीब सा माहौल हो चला है,
मेरा रायपुर अब बदल चला है….

ढूंढता हूँ उन परिंदों को,
जो बैठते थे कभी घरों के छज्ज़ो पर
शोर शराबे से आशियाना
अब उनका उजड़ चला है,
मेरा रायपुर अब बदल चला है…..

होती थी ईदगाह भाटा से
कभी तांगे की सवारी,
मंज़िल तो वही है
मुसाफिर अब आई सिटी बस में
चढ़ चला है
मेरा रायपुर अब बदल चला है…

भुट्टे, चूरन, ककड़ी, इमली
खाते थे कभी हम
स्कूल कॉलेजो के प्रांगण में,
अब तो बस मैकडोनाल्ड,
पिज़्जाहट और
कैफ़े कॉफ़ी डे का दौर चला है
मेरा रायपुर अब बदल चला है….

वो राज, आनंद, बाबूलाल के दीवाने थे आप हम,
अब आइनॉक्स, बिग सिनेमा,
और पीवीआर का शोर चला है
मेरा रायपुर अब बदल चला हैै….

रायपुर के धडी चौक
, केटी चौराहे पर रुक कर बतियाते
थे दोस्त घंटों तक
अब तो बस शादी, पार्टी या
उठावने पर मिलने का ही दौर चला है
मेरा रायपुर अब बदल चला है….

वो टेलीफोन के पीसीओ से फोन
उठाकर खैर-ख़बर पूछते थे,
अब तो स्मार्टफोन से फेसबुक, व्हाटसऐप और ट्वीटर का रोग चला है
मेरा रायपुर अब बदल चला है…..

मोती बाग; गाँधी उधान और
अनुपम गाडेनृ में फलली, भेल, मुंगोडी का ज़ायका रंग जमाता था
अब तो सेन्डविच, पिज़्ज़ा, बर्गर और पॉपकॉर्न की और चला है
मेरा रायपुर अब बदल चला है….

वो साइकिल पर बैठकर
दूर टाटीबंद की डबल सवारी,
कभी होती उसकी,
कभी हमारी बारी,
अब तो बस फर्राटेदार
बाइक का फैशन चला है
मेरा रायपुर अब बदल चला है….

जाते थे कभी ट्यूशन
पढ़ने साहू सर के वहाँ,
बैठ जाते थे फटी दरी पर भी
पाँव पसार कर ,
अब तो बस ए.सी.कोचिंग क्लासेस
का धंधा चल पड़ा है,
मेरा रायपुर अब बदल चला है…..

खो-खो, लोहा-लंगड,
क्रिकेट, गुल्लिडंडा, पिटटूल
खेलते थे गलियों और
मोहल्लों में कभी,
अब तो न वो पुरानी बस्ती की गलियाँ रही
न बूढातालाब न वो सपऱे का खेल का मैदान,
सिर्फ और सिर्फ कम्प्यूटर गेम्स
का दौर चला है,
मेरा रायपुर अब बदल चला हैं…..

रंग मंदिर में अल-सुबह तक चलते क्लासिकल गाने-बजाने के सिलसिले
अब तो क्लब; पब, और डीजे का
वायरल चल पड़ा है,
मेरा रायपुर अब बदल चला है….

दानी, सालेम, डागा, डिगीृ कॉलेज की लड़कियों से
बात करना तो दूर
नज़रें मिलाना भी मुश्किल था
अब तो बेझिझक हाय ड्यूड,
हाय बेब्स का रिवाज़ चल पड़ा है
मेरा रायपुर अब बदल चला है….

घर में तीन भाइयों में
होती थी एकाध साइकिल
बाबूजी के पास स्कूटर,
अब तो हर घर में कारों
और बाइक्स का काफ़िला चल पड़ा है
मेरा रायपुर अब बदल चला है….

खाते थे राठौर चौक के समोसे,
सदर की कचोरी, साहू की जलेबी, शारदा चौक का फालूदा, गरमा-गरम बालूशाही रामजी में,
अब वहाँ भी चाउमिन, नुडल्स,
मन्चूरियन का स्वाद चला हैं
मेरा रायपुर अब बदल चला है….

कोई बात नहीं;
सब बदले लेकिन मेरे रायपुर के
खुश्बू में रिश्तों की गर्मजोशी
बरकरार रहे
आओ सहेज लें यादों को
वक़्त रेत की तरह सरक रहा है…
मेरा रायपुर अब बदल चला हैैं…


- श्रीराम द्विवेदी
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